सनातन धर्म में एकादशी तिथि को समस्त पापों का नाश करने करने और पुण्य अर्जित करने वाली तिथि के रूप में माना गया है। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा या पवित्रा एकादशी कहा जाता है।
एकादशी तिथि भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस दिन समस्त सुखों एवं सिद्धियों को प्रदान करने वाले श्री भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस बार पवित्रा एकादशी 27 अगस्त, रविवार को मनाई जाएगी।
पवित्रा एकादशी का महत्व
पवित्रा एकादशी को मोक्ष देने वाली एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। इस विशेष दिन पर व्रत करने से जीवन के सभी नकारात्मक प्रभाव व सभी बाधाएं दूर होती हैं। पदमपुराण के अनुसार संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत को अमोघ माना गया है। इस व्रत को करने वाले भक्तों को न केवल स्वस्थ तथा दीर्घायु संतान प्राप्त होती है बल्कि उनके सभी प्रकार के कष्ट भी दूर हो जाते हैं। वही इस व्रत के प्रभाव से वाजपेयी यज्ञ का फल मिलता है। भगवान विष्णु अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। पवित्रा एकादशी की कथा का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है। वंश वृद्धि होती है तथा समस्त सुख भोगकर वैकुण्ठ की प्राप्ति होती है।
पूजाविधि
इस दिन साधक को प्रातः व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णुजी की पूजा बड़ी ही श्रद्धाभाव से करनी चाहिए। भगवान विष्णु को रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए। संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। योग्य संतान के इच्छुक दंपत्ति प्रातः स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। इस दिन भक्तों को परनिंदा, छल-कपट, लालच, द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर, श्रीनारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
पवित्रा एकादशी की कथा
कथा के अनुसार द्वापर युग के प्रारंभ का समय था, महिष्मतीपुर में राजा महिजित अपने राज्य का पालन करते थे।निःसंतान होने के कारण राजा बहुत दुःखी रहते थे। प्रजा से राजा का दुःख देखा नहीं गया और वह लोमश ऋषि के पास गये एवं ऋषि से राजा के निःसंतान होने का कारण और उपाय पूछा। लोमश ऋषि ने बताया कि राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था।एक दिन जेठ के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को,जब दोपहर का सूर्य तप रहा था,वह एक जलाशय पर पानी पीने पहुंचा।तभी एक गाय अपने बछड़े सहित वहां पानी पीने आ गई। वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हांककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीकर प्यास बुझाई।उसी पापकर्म के कारण राजा को निःसंतान रहना पड़ रहा। लोमश ऋषि ने उन लोगों से कहा कि अगर आप लोग चाहते हैं कि राजा को संतान की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपने व्रत का पुण्य राजा को दान कर दें। राजा के शुभचिंतकों ने ऋषि के बताए विधि के अनुसार व्रत किया और व्रत के पुण्य को दान कर दिया। इससे राजा को सुंदर एवं स्वस्थ्य पुत्र की प्राप्ति हुई।मान्यता है कि जो भी व्यक्ति निःसन्तान है, वो व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से पूरा करे तो अवश्य ही उसकी इच्छा पूरी होती है और उसे संतान की प्राप्ति होती है।
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